
जाल है इधर भी, जाल है उधर भी, फंसना है तूझे भी, फंसना है मुझे भी।
कहीं पैसों का जाल, कहीं मोहब्बत का जाल, कहीं रूतबे का जाल, कहीं ताकत का जाल।
जितना संभलें, उतना फंसे, जितना उठे ,उतना गिरे।
उलझन में अपनी तू खुद ही उलझेगा,और उलझेगा तभी तो सुलझेगा।
जाल बोहोत से है बाहर, पर सुलझाने को झांकना अन्दर ही पड़ेगा।
खूबसूरत लिखा है
🙏🙏